समाज का कड़वा सच-18
जो जी उठे तो फिर,
दफनाने को है सब तैयार, तुझसे ज्यादा तेरी दौलत से, होने लगा अब उनको प्यार, सूखने लगे आसूं अब उन आंखों में, दिखती है पैसों की चमक, न जाने क्यों चिता की राख पर, गिरते पानी से भी लोग लेने लगे महक, अब तेरी नहीं चर्चा होती, तलाशने में जुटे जो तूने दौलत कमाई, लगता नहीं मातम घर तेरा, लगता है जैसे जल्दी, गुंजेगी तेरे घर शहनाई, काश कि मेरे दोस्त, मैं हाल ए दिल की खबर, तुझे कर पाता, अच्छा वह मंजर तूने नहीं देखा, वरना तू फिर दूसरी दफा भी मर जाता....
शाम मैं जब टहलने निकला तब मैंने देखा भीरु का बड़ा बेटा अपने दोस्त के साथ किसी बात पर मशगूल थे , उन्हें इस बात का जरा सा भी एहसास नहीं कि सड़क से गुजरने वाला हर आदमी सड़क से ज्यादा आसपास में बात करने वाले लोगों की बातों पर ज्यादा ध्यान रखता है , और जिनमें से कुछ लोगों को तो सिर्फ बाहना चाहिए होता है कि गॉसिप करने के लिये कोई विषय मिले , और मौका मिलते ही वे कूद पड़ते हैं ...
लोगों की बात का हिस्सा बनने और ऐसे लोगों को हर बात पर पब्लिक की राय जानना और फिर उसे लोगों के बीच समाचार पत्र की तरह बाँटना, उन्हें समाज कल्याण से कम नहीं लगता , कभी - कभार वह कुछ शब्द भावनाओं के साथ मिलाकर पेश करना भी नही भूलते और उफ्फ्फ ऐसे लोगों का सरल हृदय तो देखने लायक होता है , वे इतने भावूक होते है कि बात करते करते कब रो दे, कोई भरोसा ही नहीं , चाहकर भी कोई उनकी बात को मानने से इंकार नहीं कर सकता ।
ऐसे ही गुणवान लोगों में से भी मेरे एक परम मित्र रामदीन भाईसाहब भी थे , जो पेशे से क्लर्क का काम करते थे , इसीलिए बड़े बाबू को अपनी बैठक में शामिल करने से कोई रोक भी नहीं सकता , और आज तो लग रहा था जैसे , शिकार की तलाश में वो मुझे ही हूँढ रहे थे, और इसीलिए जैसे उन्होंने मुझे देखा वह पुकारने लगे , लेकिन चूंकि मैं अभी ऐसे भी विवाद में नहीं पड़ना चाहता था , इसीलिए उन्हें अनदेखा कर आगे बढ़ने लगा , लेकिन वो भला ऐसा सुनहरा मौका और ऐसा शिकार जो पहले से विक्षिप्त अवस्था में हो , छोड़ने को कहाँ तैयार थे ,
वो और तेज आवाज लगाकर मेरे सामने आ खड़े हुए , तब तो मुझे जानबुझकर अंजान बन पूछना ही पड़ा कि, अरे कैसे रामदीन बाबू...... क्या आप भी घूमने का शौक रखते है ?? जिस पर वो मुस्कुराते हुये अपनी कुटिल मुस्कान के साथ कहने लगा , कहाँ भाई ऐसा नसीब हम लोगों का कहाँ , और कम्बख्त ऐसा भी कोई बाहना नहीं कि कोई हमें पूरे वेतन के साथ कुछ दिन के लिए यूँ ही छोड़ दे...........
यह सुनते ही जैसे एक पल के लिए ऐसा लगा कि किसी ने धारदार हथियार मेरे सीने में घोप दिया हो , मैं ठिठक कर रह गया , क्योंकि आज उसी के सामने मुझे भीरु के कियाक्रम के लिए सवेतन छुट्टी की घोषणा की थी , और उसने तुरंत मुझे एहसास करवा दिया , और कहाँ भी तो क्या भीरू की मौत का बाहना .......
जी चाहा कि पलटकर दो तमाचे जमाऊ उस पर , लेकिन अपने आप को नियंत्रित कर सिर्फ इतना ही कह सका ईश्वर आपकी इच्छा पूरी करे , जिसे सुनते ही उसका चेहरा फीका पड गया .......
मैंने भी और सुनाओं कहकर उसकी उपस्थिति का कारण जानना चाहा , तब तो जैसे वह अचानक जाग उठा कि उसका मूल उद्देश्य तो कुछ और था ,और वह सुनाने लगा कि आज भीरू का ससुर और उसका बड़ा बेटा दोनों ही कार्यालय आये थे , और सर्विस रिकॉर्ड के साथ उनको मिलने वाली रूम का जायजा ले रहे थे ,
जिसमें भीरू का ससुर जान बुझकर ऐसी कोशिश कर रहा था कि क्षतिपूर्ति में मिलने वाली रकम का अधिकांश भाग उनकी बेटी को मिले , और यहाँ तक कि उन्होंने अपनी बात मनवाने के लिये , ऐसा सुनने में आया है कि किसी बाबू को रिश्वत भी दी है , अब बताओ भला यह कहाँ तक है ???क्या उसके बूढ़े माँ बाप का कोई हक नहीं , कहते हुए वह रोने लगा ...........
मैं भी क्रोध में आ गया और बोला , आखिर चाहते क्या है वो ???क्या इसी बात का इंतजार कर रहे थे , कहते हुये मेरी आँखों में क्रोध झलक आया ,जिसे देख वह फूला न समाया और पूनः अपनी बात को जारी रखते हुये कहने लगा कि और तो और ऑफिस से निकलते हुये वे दोनों आपस में बातचीत कर रहे थे ,कि जिसमें भीरू का ससुर कह रहा था ,कि वाह रे जीते जी तेरा बाप जितना नहीं कमा सकता था , और कमा भी लेता तो शायद तुमको नहीं देता , जितना उसके मरने पर तुमको मिल रहा है .......
यह सुनते समय भीरू के बेटे की आँख में कुछ आँसु तो झलके , लेकिन दूसरे ही पल दौलत की चमक साफ दिख रही थी , यह सुनते ही जैसे मेरा दिमाग सातवे आसमान पर पहुँच गया , मुँह से गालियाँ निकलने को हुई , लेकिन शांत हो गया , अब तो जैसे रामदीन को खजाना मिल गया गया हो , और वो आगे बताने लगा कि सुनने में आया कि भीरू की बहन कुछ माँग रही थी , कि उसे भीरू ने कुछ देने का वादा दिया था , वास्तव में कैलाश ने बातों बातों में भीरू के जीजा को यह बता दिया था, कि वह कोई मोटी रकम उनको देकर गया है, भीरू के परिवार को देने के लिए , और तुम उसके परिवार को दो, इसके पहले ही उसने अपनी पत्नी अर्थात भीरू की बहन को मोहरा बनाकर तुम्हारे पास भेजा था , अब तो जैसे मेरा जी किया कि बाकी सबको बाद में देखूँगा , पहले रामदीन की ही कुटाई करके थोड़ा हल्का हो जाऊँ , लेकिन क्या फायदा........
नही सौ टके सही अस्सी प्रतिशत तो मैं भी देख ही चुका था, तो भला किसी से क्या बहस करता , मैं तो ये सोचूँ कि कैलाश पागल को भी भला क्या सुझी, जो उसके जीजा के चक्कर में आ गया , और मैं बेवकूफ मन ही मन भीरु के बहन की यह बात, क्या वाकई उसे भीरुने कोई वचन दिया, भीरु की आत्मा की शांति के लिए पूरा किया जाना जरूरी है,सच मान बैठा था........... वाह रे रिश्ते ऐसा लगता जैसे वाकई भीरु सा अभागा दूजा कोई नहीं , अब तो मैं सिर्फ कैलाश को ढूंढ रहा था, कि मैं पहले उसे जाकर समझाता हूँ कि क्या वह भी और रिश्तो की तरह घर में लड़ाई करवाने में बड़ी भूमिका अदा करना चाहता हैं ,या उसे भी भीरू से कोई और शिकायत की थी ......
क्रमशः .....
Gunjan Kamal
09-Nov-2023 06:38 PM
Nice one
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